HISTORY OF "GOLJU DEVTA TEMPLE" IN GHORAKHAAL

घोडाखाल मंदिर का इतिहास (HISTORY OF GHORAKHAAL TEMPLE)

घोड़ाखाल गोलू देवता मंदिर में वैसे तो वर्ष भर देश-विदेश से पूजा अर्चना करने श्रद्धालुओं का आना लगा रहता है। मगर नवरात्रों में यहां भारी संख्या में श्रद्धालु पूजा करने पहुंचते है।

उत्तराखण्ड में न्यायी देवता के रूप मे पूजे जाते हैं ” गोलू देवता ” , ” गोलज्यू महाराज “ |



नैनीताल जिले के भवाली से लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर बसा है रमणीक , शांत एंव धार्मिक स्थल “घोड़ाखाल” | घोड़ाखाल न्यायी गोलू देवता के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है | (घोडाखाल मंदिर का इतिहास , मान्यताये एवम् विशेषताये ! )

घोडाखाल मंदिर का इतिहास , मान्यताये एवम् विशेषताये !
“घोड़ाखाल” का शाब्दिक अर्थ है ” घोड़ों के लिए पानी का एक तालाब “ |

घोड़ाखाल एक छोटा सा गांव सुन्दर पहाड़ी क्षेत्र है , जो कि मुख्य रूप से पहाड़ी लोगों द्वारा पूजा की गई भगवान गोलू के मंदिर के लिए जाना जाता है |

जो समुद्र तल से 2000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित आकर्षक क्षेत्र है |

इसे ” घंटियों के मंदिर ” के नाम से भी जाना जाता है |

गोलू देवता का मंदिर भव्य व आकर्षक है |

चारों ओर टंगी घंटियां व भक्तों के कागजों पर लिखे मन्नतों स्पष्ट अंदाजा लगाया जा सकता है कि देवभूमि में गोलू देवता न्यायी देवता के रूप में पूजे जाते हैं |

मंदिर में हर तरफ बंधी हजारों घंटियां लोगों में गोलू देवता की आस्‍था का प्रतीक है।

घोड़ाखाल जहां अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विख्यात हैं वहीं यह आध्यात्म व प्रमुख धार्मिक स्थल है |

यहां वर्ष भर श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है |


नवरात्रों व श्रावण मास में मंदिर में अत्यधिक चहल पहल बढ़ी रहती है |

घोडाखाल मंदिर के गोल्जू देवता की कहानी (Story of Golju Devta of Ghorakhal Temple)

किंवदन्तियों के अनुसार “गोलू देवता” की उत्पत्ति कत्यूर वंश के “राजा झालराई” से मानी जाती है।जिनकी तत्कालीन राज्य की राजधानी धूमाकोट चम्पावत थी |

राजा झालराई की सात रानियां होने पर भी वह नि:संतान थे। संतान प्राप्ति की आस में राजा द्वारा काशी के सिद्ध बाबा से भैरव यज्ञ करवाया और सपने में उन्हें “गौर भैरव” ने दर्शन दिए और कहा राजन अब आप आठवां विवाह करो ” मै उसी रानी के गर्भ से आपके पुत्र रूप में जन्म लूंगा |

राजा ने आठवां विवाह “कालिंका” से रचाया । और जल्द ही रानी गर्भवती हो गई | गर्भवती होने के कारण सातो रानियों में ईष्या उत्पन्न हो गई | रानियों ने षड्यंत्र रचकर कालिंका को यह बात बताई कि ग्रहों के प्रकोप से बचने के लिए माता से पैदा होने वाले शिशु की सूरत सात दिनों तक नहीं देखनी पड़ेगी  | और प्रसव के दिन सातो रानियों ने नवजात शिशु की जगह सिलबट्टा रख देती है | सातो रानियों ने कालिंका रानी को बताया कि उसने सिलबट्टे को जन्म दिया है | उसके बाद सातो रानी मिल कर कालिका के पुत्र को मारने की साजिश रचने लगी | सर्वप्रथम सातो रानियों ने मिलकर रानी कालिंका के पुत्र के लिए यह योजना बनायीं | वो बालक को गौसाला में फैक देंगे | और वो बालक जानवरों के पैर तले कुचलकर मर जाएगा |


सातो रानियाँ उस बालक को गौसाला में फेक कर चले जाती है| थोड़े समय बाद जब रानियाँ बालक को गौसाला में देखें आती है | तो वो देखती है कि गाय घुटने टेक कर शिशु के मुंह में अपना थन डाले हुए दूध पिला रही है | बहुत कोशिश करने के बाद भी बालक नहीं मरता है | बाद में रानियाँ उस बालक को संदूक में डालकर काली नदी में फेक देती है | मगर ईश्वर के चमत्कार से संदूक तैरता हुआ गौरी घाट तक पहुंच जाता है ।

मछवारे को बालक के दर्शन :- 
गौरी घात में वो संदूक “भाना” नामक मछुवारे के जाल में फंस जाता है ।

मछुवारे की संतान ना होने के कारण मछुवारा उस बालक को देख कर प्रसन्न होकर उसे घर ले जाता है |

गौरी घाट में मिलने के कारण मछुवारा उस बालक का नाम “गोरिया” रख देता है |

बालक जब बड़ा होने लगा तो वो उस मछवारे से घोड़े की जिद्द करने लगाता है |

लेकिन मछुवारे के पास घोडा खरीदने के लिए पैसे  होने के कारण वो बडिय एक लड़की का घोडा बना लाता है |

बालक उस काठ के घोड़े से अंत्यंत खुश हो जाता है |

एक दिन जब बालक उस घोड़े पर बैठता  है तो वह घोड़ा सरपट दौड़ने लगाता है ।

यह नजारा देख गांव वाले चकित रह गए ।

बालक की सातो रानियों से मुलाक़ात :-
एक दिन बालक उसी काठ के घोड़े में बैठकर धुमाकोट नामक स्थान पर पहुच जाता है |
जहां सातों रानियां राजघाट से पानी भर रही थीं।

और बालक अपनी माता  “कालिंका” के प्रति रचे षड्यंत्र की बात रानियों के मुख से सुन लेता है |

ये बात बालक जान कर भी उस समय शांत रहता है |

वह रानियों के पास जाकर कहता है कि पहले उनका घोडा पानी पिएगा | उसके बाद आप पानी भरेंगे |

यह सुनकर रानिया हसने लगती है और कहती है “मुर्ख काठ का घोडा भी कही पानी पी सकता है”।

उसके बाद बालक बोलता है “जब स्त्री के गर्भ से सिलबट्टा पैदा हो सकता है तो कांठ का घोड़ा पानी क्यों नहीं पी सकता”।

यह सुनकर सातों रानियां घबरा जाती है ।

राजा से उस बालक के बारे में शिकायत कर देती है |

उसके बाद राजा उस बालक को बुलाकर सच्चाई जानना चाहता था |

तो बालक ने सातों रानियों द्वारा उनकी माता कालिंका के साथ रचे गये षडयंत्र की कहानी सुनाता है ।

कहानी सुनने के बाद राजा उस बालक से अपने पुत्र होने का प्रमाण मांगता है |

इस पर बालक गोरिया ने कहा कि ” यदि मैं माता कालिंका का पुत्र हूं तो इसी पल मेरे माता के वक्ष से दूध की धारा निकलकर मेरे मुंह में चली जाएगी और ऐसा ही हुआ “। राजा ने बालक को गले लगा लिया और राजपाट सौंप दिया।

इसके बाद वह राजा बनकर जगह-जगह न्याय सभाएं लगाकर प्रजा को न्याय दिलाते रहे।

न्याय देवता के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त करने के बाद वह अलोप हो गए।

गोल्ज्यू देवता के नाम :-
वही बालक बड़ा होकर ” ग्वेल″ , “गोलू”, “बाला गोरिया” तथा ” गौर भैरव ” नाम से प्रसिद्ध हुआ। “ग्वेल” नाम इसलिये पड़ा कि इन्होंने अपने राज्य में जनता की एक रक्षक के रुप में रक्षा की और हर विपत्ति में ये जनता की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से रक्षा करते थे।

गौरीहाट में ये मछुवारे को संदूक में मिले थे, इसलिये “बाला गोरिया” कहलाये । भैरव रुप में इन्हें शक्तियां प्राप्त थीं और इनका रंग अत्यन्त सफेद होने के कारण इन्हें ” गौर भैरव ” भी कहा जाता है। ग्वेल जी को न्याय का देवता भी कहा जाता है।

उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले में स्थित चितई गोलू देवता मंदिर का इतिहास और मान्यताये बिलकुल एक समान जैसी ही है |


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