गोरिल की गढ़वाली जागर कथा,भाग-1 | Golju Devta, Golu Devta History, Story in Hindi

चपावत के राजा झालूराय जब पानी के लिए
अनशन पर बैठ गए थे कालिंका के आश्रम में

🔥गोरिल की गढ़वाली जागर कथा,भाग-1🔥



कुमाऊं और गढ़वाल के विभिन्न क्षेत्रों में 'ग्वेल देवता' ‘गोलज्यू’ ,‘गोरिल' आदि विभिन्न नामों से आराध्य न्याय देवता की लोकगाथा के विविध संस्करण प्रचलित हैं और उनमें इतनी भिन्नता है कि कभी कभी उनमें परस्पर तारतम्य बिठाना भी बहुत कठिन कार्य हो जाता है। लोक गाथाओं की सामान्य प्रवृत्ति रही है कि विभिन्न क्षेत्रीय मान्यताओं और जनश्रुतियों के आधार पर इनका निरंतर विकास होता रहता है।जागर लगाने वाले क्षेत्रीय जगरियों के द्वारा भी कथा में अपनी तरफ से कुछ नया जोड़ देने के कारण न्याय देवता ग्वेल की कथा के साथ समय समय पर कई अवांतर कथाएं भी जुड़ती गई हैं। मूल कथा को क्षेत्रीय भेद और स्थानीय मान्यताओं के कारण भी कई तरह के मोड़ दे दिए गए हैं।इसलिए यह पता लगाना कठिन है कि न्याय देवता की मूलकथा क्या थी? और उसमें कौन सा प्रसंग बाद में जगरियों द्वारा जोड़ दिया गया?
जनश्रुतियों पर आधारित ग्वेल देवता की लोक गाथाओं और लोक मान्यताओं का गवेषणात्मक और तुलनात्मक सर्वेक्षण किया जाए तो अनेक प्रकार की विविधताएं सामने आती हैं। उदाहरण के लिए गोरिल का जन्मस्थान सोर पिथौरागढ़ की गाथाओं में हलराइकोट (बांसुलीसेरा) बताया गया है। पूर्वी अल्मोड़ा की गोरिल गाथाओं में ग्वालूरीकोट और पाली पछाऊं की गाथाओं में गढ़ चम्पावत या धूमाकोट कहा जाता है।गोरिल के पिता को कहीं हलराई या हालराई तो पाली पछाऊं और पूर्वी अल्मोड़ा की गाथाओं में झालराई कहा गया है। रंगोड़,लखनपुर की गाथाओं में झालाराई के पिता का नाम हालराई गाया जाता है। गोरिल की माता का नाम यद्यपि सभी गाथाओं में कालिका अथवा कालिंका रानी बताया गया है तथापि 'सोर' की गाथाओं में कालिका रानी को काला पहाड़ के गरुवा राजा की पुत्री कहा गया है। सालम,रंगोड़ की गाथाओं में कालिंका रानी को पंचनाम देवताओं की 'फूलकन्या' बताया गया है। 'फूलकन्या' उस कन्या को कहते हैं जो कुंवारी कन्या रजस्वला न हुई हो।सभी गाथाओं में कालिंका की सात सौतें बताई जाती हैं।कालिंका आठवीं रानी के रूप में आती है।

मैंने ग्वेल देवता से जुड़ी अपनी पिछली पोस्ट में एटकिंसन द्वारा लिखी गई ग्वेल कथा के सन्दर्भ में गढ़वाल में प्रचलित ग्वेल की लोककथा की जानकारी देने की बात कही थी। उसी सन्दर्भ में बताना चाहुंगा कि कुमाऊं की तरह गढ़वाल में भी ग्वेल देवता की पूजा और जागर लगाने की परंपरा जनसामान्य में सदियों से चली आ रही है। गढ़वाल की जागर कथाओं में न्याय देवता का गुणगान 'पृथीनाथ को पाट' के रूप में बहुत श्रद्धाभाव से किया जाता है तथा पौड़ी गढ़वाल स्थित कंडोलिया देवता के मंदिर में इसकी आराधना क्षेत्र रक्षक देव के रूप में की जाती है।आज हम इस पोस्ट के द्वारा ग्वेल देवता की जन्म कथा से सम्बंधित जिस कथा की जानकारी देना चाहते हैं वह गढ़वाल में प्रचलित गोरिल की कथा से जुड़ा बहुत ही रोचक वृत्तांत है।गढ़वाल के लोककथा विशेषज्ञ डॉ.गोविंद चातक की पुस्तक 'गढ़वाली लोक गाथाएं' (तक्षशिला प्रकाशन, दिल्ली,1996) के आधार पर मैं इस कथा को प्रस्तुत कर रहा हूं। डॉ.गोविंद चातक ने उक्त पुस्तक में (8.6.18 गोरील,पृ.177-187) गोरिल की इस जागर का आख्यान 'पृथीनाथ को पाट' के रूप में किया है। गोरिल के पिता का नाम झालूराय और माता का नाम "जिया-मां कालिंक्या" बताया गया है।कुमाऊंनी ग्वेल की कथाओं में प्रायः कालिंका द्वारा दो लड़ते हुए भैंसों को अलग करने की कथा आती है और उसे वहां पंच देवताओं की बहिन बताया जाता है,पर इस तरह का वृत्तांत इस गढ़वाली लोकगाथा में नहीं मिलता। कालिंक्या को महादेव शिव की मुंह बोली बहिन कहा गया है।वह घनघोर गाजणी वन में रहने वाली चामत्कारिक शक्तियों से सम्पन्न और सोने के महलों में रहने वाली तपस्विनी स्त्री है।इस ग्वेल कथा के अनेक ऐसे रोचक कथा प्रसंग हैं,शायद जिनकी जानकारी जन सामान्य के लिए बिल्कुल नई होगी।इस गढ़वाली गोरिल के जागर की कथा को हम यहां दो भागों में प्रस्तुत कर रहे हैं। किंतु इस जागर का हिंदी भावार्थ प्रस्तुत करने से पहले इस जागर के प्रारंभिक गढ़वाली भाषा के बोलों से अवगत कराना चाहेंगे,जो इस प्रकार हैं-

🔥गोरिल की गढ़वाली जागर🔥
🇯🇵।।ॐ पृथी नाथ को पाट।।🇯🇵
गुरु को शबद,नौ नरसिंह वीर को पाट;
चौबटा की धूळ,कांवर की विद्या को पाट,
गोरिया! दलेन्द्र हरन्त करी
दुःखों कू अंत करी, सुबुद्धि देई!
मन इच्छा पूर्ण करी,
कुटुम प्रवार पर छाया करी;
चार दिशा में मेरा बैरी भसम करी।
चंपावती में थान तेरो जागरन्तो है जयान!
तैं चंपावती राज मा होलो राजा झालूराय,
राजा की होली सात राणी-बौराणी।
हे सात बौराणियों की कोखी मुसो नी जनमे,
हे सात बौराणियों की कोख नी फली!
राजा झालूराय रैगे जनम को औतो,
दांतुड़ी टूटी वैकी,बाल फूली गैंन राजा का।
तब हे पृथीनाथ!वो कना कारणा कद,
मेरी सैणी चंपावती बिना राजा की रैगी।"
(साभार: डॉ.गोविंद चातक,'गढ़वाली लोक गाथाएं',
पृ.177 )

🔥गोरिल की गढ़वाली जागर कथा भाग-1🔥
चंपावती राज्य में झालूराय का राज्य था। राजा की सात रानियां थीं किंतु उनकी कोई संतान नहीं थी। राजा बूढा हो गया,उसके दांत टूट गए और सिर के बाल पककर फूल गए।राजा को इस बात का भारी दुःख सता रहा था कि उसकी चंपावती बिना राजा के ही रह गई। एक दिन राजा ने शिकार पर जाने का निश्चय किया।राजा के महली-मुसद्दी शिकार में जाने के लिए तैयार हो गए।राजा की पालकी सजाई गई।चंपावती नगरी से गाजे बाजे के साथ और अस्त्र-शस्त्र और हथियारों से लैश होकर सारे सैनिक शिकार के लिए प्रयाण करने लगे।राजा ने अपने भडों (सैनिकों) को सिर पर लोहे के शिरस्त्राण, हाथ में चमकती तलवार और धनुषबाण लेकर शिकार पर चलने का आदेश दिया।किंतु जंगल में गए तो शिकार के नाम पर एक चिड़िया का पंख भी नहीं मिला।अंत में राजा थक हार कर एक पत्थर की आड़ में बैठ गया।उसने अपनी प्यास बुझाने के लिए अपने सिपाहियों को बांज की जड़ों का ठंडा पानी लाने के लिए कहा। सिपाही पानी की तलाश में गाजणी के वन में एक ताल के पास पहुंचे।वहां जिया-मां कालिंक्या (कालिका) रहती थी।वह सुबह को 'कंडाली'(बिच्छू पौधे) की डाली बन जाती थी। वैसे वह सोने की नगरी में सोने के महलों की मालकिन थी।उसके पास खूंखार कुत्ते,दहाड़ मारते,गरजते रीछ,बाघ आदि भयानक जानवर थे।झालूराय के सैनिक राह भटकते पानी लेने के लिए जिया-मां कालिंक्या की उस बावड़ी पर पहुंचे तो,उन्हें देखते ही जिया-मां ने अंदर से कहा-'अरे कौन हो तुम कहां के बेसुध बालक हो?' सिपाही बोले- 'रानी!हम राजा झालूराय के पैक (सिपाही) हैं।हमें प्यासे राजा के लिए यहां से पानी ले जाना है।' जिया-मां कालिंक्या बोली-'नहीं तुम मेरा पानी उस राजा के लिए मत ले जाना।वह जन्मों का अपूता है और कर्मों का छोटा है। तुमको पानी पीना है तो पी लो पर उस राजा के लिए पानी ले जाआगे तो भारी अनिष्ट होगा।' तब जिया-मां कालिंक्या की आज्ञा से राजा के पैक पानी पीकर अपनी प्यास बुझाते हैं और खाली हाथ राजा के पास चले जाते हैं। राजा सिपाहियों से पूछता है-'हे मेरे पैको! मैं यहां प्यास से मर रहा हूं।तुम पानी लेकर क्यों नहीं आए?'सिपाही बोले महाराज!हम पानी की बावड़ी पर गए थे,पर उस बावड़ी की मालकिन ने कहा-'उस राजा के लिए पानी मत लेजाना, क्योंकि वह जन्म का अपूता है और कर्म का नाटा है।' सैनिकों के मुख से यह बात सुनकर राजा झालूराय उस गौमुखी बावड़ी में स्वयं पहुंच गया।परंतु कालिंक्या ने उसे पानी नहीं पीने दिया।

तब राजा कालिंक्या के उसी आश्रम में बावड़ी के पास अनशन करता हुआ समाधि लगा कर बैठ गया। नौ दिन नौ रातें बीत गई तो जिया मां कालिंक्या को भी चिंता हुई कहीं राजा उसके आश्रम में बिना भोजन और पानी के अपने प्राण त्याग न कर दे।इसलिए कालिंक्या सोने के थाल में राजा के लिए भोजन लेकर आई। किंतु राजा ने भोजन ग्रहण नहीं किया। कालिंक्या सुबह का बासी खाना शाम को फ़ेंकतीं और शाम का खाना सुबह फ़ेंकतीं।जिया-मां कालिंक्या को अब चिंता सताने लगी कि उसके गले ये कैसी मुसीबत आ पड़ी?अगर इस राजा को कुछ होता है तो उसका कलंक उस पर ही लगेगा। मैं महादेव की मुंह बोली बहन हूं।ये राजा भूखा प्यासा समाधि में बैठ गया है,इससे मेरी बदनामी ही हो रही है। ऐसा सोच कर कालिंक्या राजा से बोली-"हे राजा तू खा पी क्यों नहीं रहा है? मेरे घर के आगे इस तरह आसन जमा कर क्यों बैठ गया है? तुझे क्या चाहिए? क्या दान में कुछ चाहिए?" राजा बोला- "कालिंक्या! मुझे भारी प्यास लगी है। मुझे पानी पिला दे। उसके बदले चाहे तो मेरे हाथ की इस हीरे की अंगूठी ले ले।" जिया मां राजा के कहने में आ गई।उसने राजा के हाथ से हीरे की अंगूठी लेकर अपने हाथ में पहन ली और सोने के गड़वे में पानी लेकर आ गई। तब झालूराय बोला-"हे कालिंक्या तूने मुझ से पानी का मोल तो ले लिया है,किंतु अंगूठी पहनने का मतलब समझती है क्या ?अब तू मेरी हो गई है।अपनी जिद के कारण अब तू हार गई है।इसलिए अब तुझे मुझ से विवाह करना होगा। कालिंक्या अपने साथ हुए इस छल कपट से धर्म संकट में पड़ गई और राजा से बोली-"ठीक है,मैं एक संस्कारवती,शीलवती नारी हूं इसलिए अपने विवाह का निर्णय स्वयं नहीं ले सकती हूं। तुझे मेरे भाई महादेव शिव के पास चलना होगा। वे ही मेरे विवाह के बारे में अंतिम फैसला लेंगे-
🇯🇵"तब क्या बोलूं छ राजा झालूराय :
त्वै पर मेरी मूंदड़ी लैगे कालिंक्या!
तिन लिने पाणि को मोल मैं से,
पर जाणदी छै अंगूठी पैरण को मतलब क्या होंद।
तब वा होई गए हारमान,धोखा मा ऐ गए।
कालिंक्या बोल्दी तिल जाण भाई शिव क पास;
मेरो भाई जबान देलो त मैं तेरी राणी है जौलू।"🇯🇵
आगे भी जारी---
🔥आगामी लेख में पढ़िए कथा का शेष भाग🔥
💧कालिंक्या बूढ़े राजा झालूराय के साथ विवाह करने के लिए क्यों रोने लगी?और शिव जी ने कैसे मनाया कालिंक्या को झालूराय के साथ विवाह के लिए?💧

-© डा.मोहन चंद तिवारी 💐💐💐





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